बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - उच्चतर शैक्षिक मनोविज्ञान एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - उच्चतर शैक्षिक मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - उच्चतर शैक्षिक मनोविज्ञान
प्रश्न- दुश्चिंता पर टिप्पणी लिखिए।
अथवा
दुश्चिंता पर लेख लिखिए।
उत्तर -
दुश्चिंता एक प्रक्रिया में रुकावट समझी जाती है। एक व्यक्ति जो दुश्चिंता से पीड़ित होता है एक कार्य करने में पूर्ण शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता। इस प्रकार यह विचार किया जाता है कि दुश्चिता क्रिया में रुकावट डालती है और इस तरह सीखने की गति में कमी आ जाती है।
बुग्लेस्की के अनुसार - “अवधान सीखने में एक प्राथमिक तत्व है। अवधान पुरस्कार की इच्छा, दण्ड से बचने की इच्छा, जिज्ञासा इत्यादि के परिणामस्वरूप होता है, किन्तु अवधान के लिये मूल वस्तु दुश्चिंता है।"
'सुलीवन के निरीक्षणों ने उसे एक बात पर विश्वास दिलाया कि दुश्चिंता सम्बन्धी प्रारम्भिक अनुभव शैशवकाल में होते हैं। जब बालक शैशवकाल में अपने माता-पिता में संवेगात्मक तनाव या दुःख देखता है तो उसे दुश्चिंता का अनुभव होने लगता है। सुलीवन ने अनुभव किया कि बालक ने परेशानी में झुंझलाहट के भाव प्रदर्शित किए और खाने से मना करना प्रारम्भ किया जबकि उसकी माता अप्रसन्न थी या निराशा से भरी थी। यहाँ तक देखा गयाकि उस समय भी उसके जब माता उन घटनाओं से परेशान थी जो बालक से किसी भी प्रकार से सम्बन्धित नहीं थी तब भी बालक में दुश्चिंता प्रकट हो गयी। सुलीवन के अनुसार, माता और शिशु में इतना निकट संवेगात्मक सम्बन्ध है कि माता के बालक की ओर जरा भी विपरीत भाव उसकी सुरक्षा के भाव को धक्का लता देते हैं। बालक यह समझने लगता है कि माता अब उसे सुरक्षा नहीं देगी और प्रेम नहीं करेगी। असुरक्षा का भाव और माता से मनोवैज्ञानिक एकाकीपन के अनुभव का है इसी अनुभव के भाव को मनोवैज्ञानिक सुलीवन दुश्चिंता के नाम से इसे परिभाषित करते हैं।
जो दुश्चिंता सबसे पहले शैशवकाल में अनुभव करते हैं वही जीवन भर हमारे व्यवहार पर प्रभाव डालती है। यह उस समय प्रकट हो जाती है जिसके कारण दूसरे व्यक्ति उसकी आलोचना करते हैं कि वह झुंझलाहटपूर्ण व्यवहार प्रदर्शित करते हैं उनका व्यवहार दूसरे व्यक्ति पसन्द नहीं करते हैं तथा उन्हें त्याग भी देते हैं। जितना महत्व का हमारे लिए त्यागने वाला व्यक्ति होगा और जितना अधिक उसका दबाव होगा उतनी ही अधिक दुश्चिंता होगी। व्यवहार भी दुश्चिंता उत्पन्न कर देता है। ऐसा उस समय होता है जब बालक अपने को ऐसा व्यवहार करते पाते हैं। वे परिस्थितियाँ जो अस्पष्ट हैं, या भावात्मक हैं, वह भी दुश्चिंता उभारती है। भविष्य दुश्चिंता का बड़ा स्रोत है क्योंकि इसमें अनिश्चितता होती है। इसी कारण भविष्य के लिए योजना बनाते हैं और ऐसी सावधानियाँ अपनाते हैं कि भविष्य में दुश्चिंता का सामना कम करना पड़े यदि दुश्चिंता हो भी तो उससे बचाव की स्थिति तैयार हो सके।
मनोचिकित्सक ऐण्डरसन का तो यह कहना है कि सब मानव व्यवहार दुश्चिंता से बचाव पर ही आधारित है। जो कुछ भी कोई व्यक्ति करता है, जो विकल्प चुनता है, जो प्रतिक्रिया करता है, प्रत्येक उसके व्यवहार का पद और विवरण दुश्चिंता को दूर रखने के लिए ही होता है व्यक्ति चाहे तो दुश्चिंता को इतना महत्व न दे, किन्तु यह तो आवश्यक है कि व्यक्ति प्रतिदिन के व्यवहार में विशेषकर दूसरों के साथ सम्बन्धों में दुश्चिंता का समावेश अवश्य होता है
यहाँ इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि दुश्चिंता में कुछ लाभ भी निहित होते हैं व्यक्ति की यह अभिलाषा कि हम दुश्चिंता से बचें, हमें सावधानी बरतना और दूसरों के प्रति ध्यानशील होना, सिखाती है।
सामाजिक स्थितियों में बहुत कुछ सीखना इस कारण होता है कि व्यक्ति दुश्चिंता को कम करना अथवा दूर करना चाहता है। बालक अपने व्यवहार में परिवर्तन ले आते हैं ताकि अपने माता-पिता को निराश न करें। अपने माता-पिता को प्रसन्न करने के लिए बालक परीक्षा पास करने के लिए मेहनत करते हैं।
एलीसन एवं ऐश के परीक्षण जो चलचित्र से सीखने में दुश्चिंता का प्रभाव पता करने के लिए थे। इस परिणाम पर आए कि दुश्चिंता के स्तर को बढ़ाने में परीक्षण से प्राप्तांकों में वृद्धि होती है।
साधारण दुश्चिंता की विद्यार्थियों को सीखना (ग्रहण) करने योग्य बनाती है। यदि इस प्रकार की दुश्चिंता सामाजिक स्थितियों में नहीं है तो विद्यार्थी अपने अधिकार और दूसरों की भावना की ओर से लापरवाह हो जाते हैं। ऐसे बालक आत्मकेन्द्रित हो जाते हैं। वह दूसरों की परवाह नहीं करते, किन्तु अधिकतर बालक साधारण दुश्चिंता विकास करना सीख जाते हैं। यह उन पर सामाजिक प्रभाव रखती है और बालकों को आत्मनियंत्रण और आत्मविरोध सीखने के योग्य बनाती है।
जो बालक दुश्चिंता की अधिकता अनुभव करते हैं वह सीखने में प्रगति नहीं कर पाते। वह इस प्रकार के व्यवहार प्रतिमानों को विकसित कर देते हैं जो अवांछनीय है। उदाहरण के लिए एक ही विद्यार्थी परीक्षा में बहुत अधिक दुश्चिंता से पीड़ित होते हुए प्रवेश करता है तो वह प्रश्नों को गलत समझ सकता है और बहुत कुछ सामग्री भूल भी सकता है।
कोक्स महोदय ने मेलबोर्न, आस्ट्रेलिया के पाँचवीं ग्रेड में विद्यार्थियों को दश्चिंता परीक्षण दिये और उन्हें तीन समूहों में विभाजित किया, जो उच्च, मध्य और निम्न स्तर की दुश्चिंता के आधार पर थे। मध्य दुश्चिंता वाले समूह का शैक्षिक कार्य दूसरे दोनों समूहों से अच्छा था। सबसे खराब कार्य उच्च दुश्चिंता समूह का था। अन्त में यह कह सकते हैं कि एक प्रभावशाली शिक्षक वह है जो यह जानता है कि दुश्चिंता को कक्षा में कैसे उत्पन्न किया जाए। अच्छा अध्यापक दुश्चिंता के स्तर का पता रखता है जो कक्षा में प्रस्तुत होती है। यदि वह इसे अधिक पाता है तो कम करने की चेष्टा करते हैं।
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- प्रश्न- स्टैनफोर्ड बिने मानदण्ड क्या है?
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- प्रश्न- आई. क्यू. (I.Q.) से क्या तात्पर्य है? यह कैसे नापा जाता है? क्या आई. क्यू. स्थायी होता है? बुद्धि कहाँ तक पितृगत होती है? अपने उत्तर के समर्थन में प्रयोगात्मक प्रमाणों का उल्लेख कीजिये।
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- प्रश्न- शिक्षा-लब्धि पर टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- फ्रायड के सिद्धान्त के प्रमुख तत्व बताइये।
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- प्रश्न- व्यक्ति की किशोरावस्था या प्रौढ़ावस्था में उसके मानसिक स्वास्थ्य को किस प्रकार संरक्षित किया जा सकता है?
- प्रश्न- प्रौढ़ावस्था में मानसिक स्वास्थ्य को किस प्रकार से संरक्षित किया जायेगा?
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- प्रश्न- शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने के उपाय बताइये।
- प्रश्न- मानसिक द्वन्द्व से आप क्या समझते हैं? इसके क्या कारण हैं?
- प्रश्न- मानसिक द्वन्द्व के स्रोत बताइए।
- प्रश्न- समायोजन से क्या आशय है? विद्यालयी बालकों में कुसमायोजन के कारण बताइये।
- प्रश्न- समायोजन की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- विद्यालयी बालकों में कुसमायोजन के लिए कौन-कौन से कारण उत्तरदायी हैं? उनका वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- 'संघर्ष' को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- भग्नाशा (कुंठा) को परिभाषित कीजिए। भग्नाशा के प्रमुख कारणों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- दुश्चिंता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- समायोजन स्थापित करने की विभिन्न तकनीकों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- तनाव प्रबन्धन क्या है?
- प्रश्न- समायोजन विधि को संक्षेप में समझाइये।